राक्षस Rakshas

'राक्षस' ये शब्द सुनते ही दिमाग में ऐसे जीवों की तस्वीर उभर आती है जिनका चेहरा भयानक , लंबे दांत जो खून से सने हों ,बड़ी आँखे और काला चेहरा ,लंबे नाखून और न जानें क्या-क्या। जिनके ज़हन में ये तस्वीर न आए ज़रूर फिर रामायण का रावण , कुम्भकरण और मेघनाद अवश्य आते होंगे जिनका हर वर्ष विजयदशमी(दशहरा) की शाम को दहन किया(जलाया) जाता है। दशहरे के दिन जलाये जाने वाले ये तीन राक्षस भी लोगों के द्वारा अक्सर भयानक रूप में हीं बनाये जाते है क्योंकि शायद उनको लगता है कि बुरा हमेंशा बदसूरत हीं होगा या होना चाहिये जबकि असली रावण को तो किसी ने देखा भी नहीं। अब सोचने की बात तो ये हो जाती है कि वास्तव में राक्षस की परिभाषा क्या है ? क्या भयानक चेहरे वालों को हीं राक्षस कहते हैं या फिर कभी राक्षस सुन्दर चेहरे वाला भी हो सकता है? क्या वे पशु जैसे दिखते होंगे या पक्षी , सरीसृप ,मीना (मछली) या फिर मनुष्य की तरह या इनमे से कोई भी बात किसी को राक्षस कहने के लिए पर्याप्त (काफ़ी) है हीं नहीं ? क्या राक्षस सतयुग , त्रेतायुग और द्वापर युग में ही होते थे और वहीं समाप्त हो गए या फ़िर आज (कलयुग) में भी राक्षसों का अस्तित्व है ?
 आज कोई राक्षस है या नहीं ये जानने के लिए हमें समझना होगा थोड़ा उन राक्षसों के बारे में जो आज से हज़ारों वर्ष पूर्व (पहले ) मौजूद थे। यह माना जाता है की रावण (जोकि एक बहुत क्रूर राक्षस था) भोलेनाथ महादेव (शिव) का बहुत बड़ा भक्त्त था। शिव का इतना बड़ा भक्त्त होने के बाद भी उसे राम के हांथो मरना पड़ा क्योंकि वह अत्याचारी हो गया था। ध्यान रहे कि उस समय राक्षस भी ईश्वर की उपासना किया करते थे और नर (मनुष्य जाति) भी। राक्षस जाति में कई ऐसे भी राक्षस थे जो नरों (मनुष्यों) से घृणा (नफ़रत) नहीं करते थे परंतु बहुत से राक्षस ऐसे भी थे जो नारों , पशुओं और अन्य जीवों पर अत्याचार करना , उनके रक्त एवं मांस का भक्षण (खाना) खुदका अधिकार समझते थे। वे (राक्षस) इन्हें (मनुष्यों और अन्य जीवों को) अपने भक्षण (खाने) की वास्तु मानते थे और उनपर अत्याचार भी किया करते थे। इनका (राक्षसों का) लक्ष्य स्वयं को शक्तिशाली बनाकर विश्व (दुनिया) पर अपना आधिपत्य (शाशन) स्थापित करना था और ये किसी को भी खुद से उच्च नहीं मानते थे। लेकिन राक्षस जाति में कुछ अच्छे लोग (राक्षस) भी जन्में जैसेकि भक़्त प्रहलाद , राजा बलि , विभीषण और कुछ हद तक रावण भी। ये अन्य राक्षसों से भिन्न थे क्योंकि इनके कुछ उसूल (नियम) थे जिससे ये कई अच्छे कार्य किया करते जैसेकि ईश्वर की भक्ति और उनकी इक्षा पालन। इन्ही उसूलों के कारण वे कभी भी किसी की बेवजह हत्या नहीं करते , दूसरों की सहायता करते और अन्य अच्छे कार्य भी करते। परंतु रावण एक महान पंडित होने के बावजूद बाद में अत्याचार व अनाचार करने लगा तो राम को उसका वध करना पड़ा परंतु राम ने भी ये स्वीकार किया कि रावण एक महान पंडित था और इसके जैसा कोई भी दूसरा नहीं , नातो भूतकाल में और ना हीं कभी भविष्य में हीं। कुछ खास गुणों (चरित्र) के आधार पर एक जाती विशेष को राक्षस कहा जाता था। राक्षस जाति में भी कई अच्छे लोग जन्म लेते थे और नारों (मानव जाति) में भी कई बुरे लोग जन्म लेते थे।
यदि आज खोजा जाये तो आज भी हम राक्षसों को देख सकते हैं बल्कि राक्षस जाति भी आज इसी धरती पर मौजूद है। जी हाँ यह सत्य है कि राक्षस आज भी मौजूद हैं लेकिन उन्हें प्रत्यक्ष आँखों से देखना थोड़ा कठिन है। इन राक्षसों को देखने के लिए ज्ञान का प्रकाश चाहिए और तर्क की आँखे।
आज जिन आतंकवादियों ने विश्व को दहला कर रखा हुआ है सोचिये क्या वे किसी भी रूप में राक्षसों से कम हैं काया? सत्य तो यही है कि ये ही हैं असली राक्षस! जिस जाति या धर्म को ये मानते है अर्थात जिसको ये बढ़ावा देना चाहते है वह है राक्षस जाति। इनके सभी कार्य उन राक्षसों जैसे हीं है और इनकी जाति (धर्म) के भी सभी लक्षण उस समय की राक्षस जाति के समान ही है। यदि आज हम ब्रह्मा , विष्णु और शिव से पूछ पाते तो वे भी जरूर यही कहते की ये सब राक्षस हीं हैं और इनकी जाति (धर्म) राक्षस जाति है। प्राचीन (पुराने) समय के राक्षस मनुष्यों से जबरन (ज़बरदस्ती) अपनी बात मनवाते थे और आज के ये राक्षस (आतंकवादी) भी बंदूक के दम पर ऐसा हीं करते हैं। प्राचीन राक्षस जब किसी नर (मनुष्य) को बंदी बना लेते तो उसे बहुत दर्द देते और उसकी बहुत दर्दनाक हत्या करते थे , आज के ये राक्षस (आतंकवादी) भी बहुत भयावह (भयानक) मृत्यु देते हैं लोगों को। प्राचीन राक्षस भी ईश्वर की उपासना करते थे और उनसे शक्ति मांगते ताकि अपनी जाति का शाशन संसार में फैला सकें और आज के राक्षस (आतंकवादी) भी तो ईश्वर की उपासना (पूजा) करते और अपनी जाति विशेष को हीं दुनिया पर थोपना चाहते हैं। प्राचीन काल में भी कई राक्षस अच्छे थे और बाद में अच्छे मार्ग से भटक कर बुरे कार्य करने लगे और आज भी तो कई युवा, बच्चे ऐसे हीं हैं जो कुछ राक्षसों के संपर्क में आकर अच्छे मार्ग से भटककर बुरे मार्ग में फंस जाते हैं और बुरे कार्य करने लगते हैं और समझते हैं कि जैसे सिर्फ़ वही सही हैं जोकि वास्तव में गलत होता है। प्राचीन काल में राक्षस अपने साथियों को भी प्रताड़ित करने से नहीं चूकते थे जब कोई यदि अच्छा बनने या राक्षस जाति को त्यागने(उनसे अलग होने की) की कोर्शिश करता था। आज भी राक्षस जाति में कई ऐसे विद्वान हैं जिनके अनुसार उनकी स्वयं की जाति (राक्षस जाति ) से अलग होने की सजा मृत्यु है। प्राचीन काल के राक्षस कई बार महिलाओं को (जो उन्हें पसन्द आती थीं) हर (अगवा) कर ले जाते थे और उनके साथ उनकी (महिलाओं की) इच्छा के विरुद्ध सम्भोग ( sex) करते अर्थात उनका बलात्कार करते , आज के राक्षस भी तो यही करते है। जब कश्मीर से ब्राह्मणों को ख़त्म कर रहे थे तब भी ये राक्षस कुछ ऐसा हीं नारा लगा रहे थे कि कश्मीरी पंडित तो मरेंगे लेकिन उनकी औरतें ज़िंदा रहेंगी ताकि ये राक्षस उनसे स्वयं को आनंदित कर सकें (जैसे कि ये महिलाएं उनके लिए कोई पुरस्कार हो) , और ऐसा किया भी गया, बल्कि इससे भी बुरा जिसे केवल वही वयक्त कर सकता है जिसने झेल था। प्राचीन कल के राक्षस ऋषियों , ब्राह्मणों और गौ (गाय) से विशेष रूप से नफरत करते थे और इनको अन्यों की तुलना में अधिक कष्ट देते थे क्योंकि गऊ और ब्राह्मण (ज्ञानी व्यक्ति) समाज को सही दिशा और गति प्रदान करते है और गऊ तो वह जीव है जो सामाजिक तौर पर माता का दर्ज प्राप्त करती है क्योंकि केवल यही जीव है जिसमें कुछ भी व्यर्थ नहीं होता। बल्कि इसका तो मलमूत्र भी जीवनदायी है जोकि सब जानते हीं है। वैसे भी ज़रा सोचिये जिसका दूध पिया है उसे माता नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे ? शायद यही कारण  है कि भारत में गाय को माता का दर्ज दिया गया है और उसकी पूजा भी की जाती है ताकि उसके महत्त्व को अच्छे से समझा जा सके और ऐसे अमूल्य जीव की हत्या न हो। जब तक भारत देश में इन दोनों का सम्मान पूरा था तब भारत का स्वर्ण युग था। सिकंदर को भारत से वापस लौटना पड़ा , सेल्युकस को हार का सामना करना पड़ा , अशोक इतना महान बन गया कि सारी दुनिया पर दया करने लगा, कारण केवल भारत की संस्कृति थी जोकि केवल जान(पहचान) लेने से हीं वह मानसिक बल प्राप्त होता जो भूखे पेट होने पर भी शारीरिक शक्ति को कही ज्यादा बढ़ा देता और बुरे लोंगों और बुराई से लड़ने के योग्य (क़ाबिल) बना देता। भारतीय संस्कृति कभी भी राक्षसों को सफल न होने दे सकती थी इसीलिए कलयुग के इन राक्षसों ने प्राचीन राक्षसों की ही तरह संस्कृति पर हमलाकर उसे नष्ट करना चाहा जिसकी गवाही तो स्वयं नालंदा विश्वविद्यालय देता है जिसे जला डाला गया। ऐसी क्षति की कभी भरपाई नहीं की जा सकती। 
आज हमें आवश्यकता है ठीक से इन राक्षसों (आतंकवादियों) और इनकी जाति अर्थात राक्षस जाति को ठीक से पहचानने की , कहीं ऐसा न हो की बहुत देर हो जाए। अक्सर मैंने सुना है कई लोगों को कहते हुए कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता परंतु यह कहने वाला स्वयं जनता है की वह किस धर्म की बात कर रहा है और सुनने वाला भी जनता है कि किस धर्म की बात की जा रही है, वरना ये कहने की आवश्यकता हीं ना थी। इन सब के बावजूद सत्य तो यही है कि आतंकवादी हीं राक्षस है और उनकी जाति जिसे वे पूरे विश्व पर जबरन थोपना चाहते हैं वही है राक्षस जाति, इससे अधिक और क्या कहा जाए। 



 

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